बागवानी की कहानी महिला कृषक की जुबानी
मैं सुशीला देवी पत्नी श्री ईश्वर प्रसाद ग्राम चमावली पंचायत उतराना उपखण्ड लाखेरी जिला बुन्दी की निवासी हूँ। मैं 20 वर्षो से खेती का कार्य कर रही हूँ, और मेरी आजीविका का एकमात्र साधन कृषि ही है, जिससे मेरे परिवार का गुजारा चलता हैं ।
मैं अपने खेतों मे वर्षों से परम्परागत तरीके से खेती करती आ रही हूँ, जैसे गेंहू, बाजरा, सरसों, चना, धनिया आदि। खेत के कुछ हिस्से में रासायनिक उर्वरक से शाकभाजी की खेती भी करती थी। परन्तु उत्पादन की मात्रा न्यूनतम रहती थी और वर्ष के अन्त में नाममात्र आय प्राप्त हो रही थी। जिससे बच्चो की शिक्षा और परिवार की आर्थिक जरूरतो से समझोता करना पड़ रहा था तथा परिवार की जिम्मेदारी अधर मे झूल रही थी ।
वर्ष 2017 में रणथम्भौर सेवा संस्थान के द्वारा राष्ट्रीय कृषि एंव ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और एसीसी ट्रस्ट की वित्तीय सहायता से गांव में बाड़ी परियोजना का क्रियान्वयन आरम्भ किया गया। संस्था के द्वारा बाड़ी परियोजना के आमुखीकरण बैठको एवं कृषक गोष्ठियो मे बागवानी खेती के बारे मे जानकारी दी गई। आमुखीकरण कार्यक्रम से प्रेरित होकर मे भी बाड़ी परियोजना से जुड़ी और बागवानी खेती करने की ओर कदम बढ़ाऐ। संस्था ने मुझे एक एकड़ खेत में बागवानी खेती करने के लिए अच्छी किस्म के अमरूद व निंबू के पौधे, समय-समय पर उर्वरक, कीटनाशक, तकनीकी प्रशिक्षण के साथ फेंसिंग, सिंचाई हेतु स्प्रिंकलर पाईप, प्रथम तीन वर्ष तक इन्ट्रक्रोप तथा सब्जियो के बीज इत्यादि की सुविधा परियोजना के अंतर्गत दी गई।
बागवानी खेती करके मुझे जो सफलता मिली है जिसके बारे मे मैंने कभी सपने मे भी नही सोचा था । बागवानी खेती से मुझे पहले की अपेक्षा दुगुनी आय प्राप्त हुई । अब मेरे परिवार का जीवन यापन अच्छी तरह से व्यतीत हो रहा है ।
गांव की अन्य महिला किसान भी मेरी बागवानी खेती को देखकर प्रेरित हो रही है, मैं राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और एसीसी ट्रस्ट से अनुरोध करती हूँ कि मेरे साथ-साथ गांव, जिले, प्रदेश के अन्य महिला किसानों को भी बाड़ी परियोजना से लाभान्वित किया जाये ।